स्थैतिक तथा प्रावेगिक अर्थशास्त्र (Static and Dyanamic)
आधुनिक अर्थशास्त्र के विशलेषण में स्थिर तथा प्रावेगिक शव्दों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में किया जाने लगा है | आधुनिक आर्थिक सिद्धांतो की उचित व्याख्या के लिए स्थैतिक तथा प्रावेगिक शव्दों के मध्य भेद करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है | इन दोनों शव्दों का सम्बन्ध वास्तव में विभिन्न दशाओ तथा परिस्थितियों से तथा आर्थिक विशलेषण करते समय दोनों शव्दों का प्रयोग स्थिति अनुसार किया जाता है |
प्रो. हैरड के अनुसार ,"स्थैतिक व प्रावेगिक के मध्य एक सीमा निर्धारण की रेखा खिंच देने से अर्थशास्त्र के विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा|"
स्थैतिक अर्थशास्त्र की परिभाषाए (Definitions of Static Economics)
स्थैतिक शव्द का सामान्य अर्थ स्थिरता से लगाया जाता है परन्तु अर्थशास्त्र में स्थैतिक का अर्थ ऐसी अर्थव्यवस्था से लगाया जाता है जिसमे गति तो होती है परन्तु अर्थशास्त्र में स्थैतिक का अर्थ ऐसी अर्थव्यवस्था से लगाया जाता है जिसमे गति तो होती है परन्तु यह गति निश्चित दर से होती है तथा इसमें ज्यादा उतार चढ़ाव नही होते है सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था एक स्थिर गति से चलती रहती है |
मार्शल से अनुसार,"सक्रिय परन्तु अपरिवर्तनशील प्रक्रिया स्थैतिक अर्थशास्त्र है|"
प्रो.हिक्स के अनुसार,"आर्थिक सिद्दांतोके उन भागों को स्थैतिक अर्थशास्त्र कहते है जिसमे हमे तिथिकरण की आवश्कता नही होती है|"
प्रो. क्लार्क के अनुसार ," जब अर्थशास्त्र में जनसंख्या,पूँजी ,उतपादन की रीतियाँ, मानवीय अवश्यकताए स्थिर व् अपरिवर्तन शील रहते है तो वह स्थैतिक अर्थव्यवस्था कहलाती है|"
जे.एम. कीन्स के अनुसार ," स्थिर अर्थव्यवस्था का अभिप्राय उस अवस्था से लगाया है जिसमे उत्पादन ,उपभोग ,वितरण तथा विनिमय करने वाली दशाओ में कोई परिवर्तन नही होता|,"
प्रो. हेरोड के शब्दों में ,"एक स्थैतिक संतुलन का अर्थ विश्राम की अवस्था के नही बल्कि उस अवस्था से है जिसमे दिन-प्रतिदिन निरन्तर व चुस्ती से कार्य हो रहा हो परन्तु उसमे वृद्धि या कमी नही हो रही हो|"
स्थैतिक अर्थव्यवस्था का अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से लगाया जाता है जिसमे आर्थिक क्रियाएं सदेव समान गति से नियमित चलती रहती है तथा संतुलन की सिथति बनी रहती है| अर्थात् स्थैतिक का सम्बन्ध परिवर्तन की प्रक्रिया से नहीं है |
जे.एम. कीन्स के अनुसार ," स्थिर अर्थव्यवस्था का अभिप्राय उस अवस्था से लगाया है जिसमे उत्पादन ,उपभोग ,वितरण तथा विनिमय करने वाली दशाओ में कोई परिवर्तन नही होता|,"
प्रो. हेरोड के शब्दों में ,"एक स्थैतिक संतुलन का अर्थ विश्राम की अवस्था के नही बल्कि उस अवस्था से है जिसमे दिन-प्रतिदिन निरन्तर व चुस्ती से कार्य हो रहा हो परन्तु उसमे वृद्धि या कमी नही हो रही हो|"
स्थैतिक अर्थव्यवस्था का अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से लगाया जाता है जिसमे आर्थिक क्रियाएं सदेव समान गति से नियमित चलती रहती है तथा संतुलन की सिथति बनी रहती है| अर्थात् स्थैतिक का सम्बन्ध परिवर्तन की प्रक्रिया से नहीं है |
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